दिल दरिया , तूफ़ान हो मन तो,
होता मै जल सिंध अगर तो,
क्या ये जीवन सुखमय होता ?
नदी किनारे जलज पटल से ,
विपिन वृन्द पर पुष्प हो जैसे ,
वैसे जीवन की इक्षा है ,
ये मेरी जिजीविषा है |
पद्य पढ़ पढ़ बना कवी मै ,
सिखा जग संसार सकल से ,
किन्तु टूटे दिल से ही ,
आयी ये लिलिविसा है |
होता मै जल सिंध अगर तो,
क्या ये जीवन सुखमय होता ?
नदी किनारे जलज पटल से ,
विपिन वृन्द पर पुष्प हो जैसे ,
वैसे जीवन की इक्षा है ,
ये मेरी जिजीविषा है |
पद्य पढ़ पढ़ बना कवी मै ,
सिखा जग संसार सकल से ,
किन्तु टूटे दिल से ही ,
आयी ये लिलिविसा है |
था मै एक गो मूक प्राणी ,
सुधि न थी मुझे किसी रतन की ,
न जन की न परिजन की |
होता जो मै अग्रदृष्टि ,कभी न करता ऐसा अनर्थ ,
करता मै भी आदर सृष्टि की,
रचनाओ का सुन्दरता का |
पर जो वक़्त न रहा तनिक भी ,
करना विषाद उचित नहीं मन ,
जो बीत गयी सो बात गयी |
जीवन एक बहती धारा,
सुख दुःख का ही है खेल ये सारा |
कर जघन्य अपराध अगर भी ,
सिख लिया दो प्यारे शब्द ,
हे मन , उस में दोष नहीं कुछ |
अब जीवन न व्यर्थ गवाना है ,
मनु होने का मूल्य चुकाना है |
सागार जैसे मेघो को प्राण है देता ,
वैसे ही किसी महादान का ,
निश्चय ले ,आज मै बैठा |
जब तक न पूरा हो मेरा ये व्रत ,
हे दयानिधि , देते रहना जीवन अमृत |
सच ,जीवन जो सुखी बनाना है ,
केवल मैत्री धर्म अपनाना है |
दिल उदार मन-द्वेग नियंत्रण ,
ये उद्भव पौरुष गुण है ,
दया धर्म तप त्याग शक्ति से ,
उदघ्रित करो इसे , हे मन |
दिल दरिया , मन तूफ़ान जो होता,
होता जो जल सिंध अगर तन,
सुखमय होता मेरा जीवन ||