By - गीतेश मक्कर
कुछ शरारतें दबी सी रह जाती हैं ,
उभरने दो जिन्हें तो बेपरवाही दे जाती हैं ,
कुछ लम्हे जो वक़्त के झरनों में बह जाते हैं ,
ख़ामोशी में भी जो बहुत कुछ कह जाते हैं ,
कुछ ख्वाब संजोय थे नादानी में ,
कहीं छिप न जाये वो इस जवानी में ,
कुछ यादें , कुछ बातें और इक दास्ताँ थी ,
कहीं रह न जाये वो अनकही सी ,
कहीं रह न जाये वो अनकही सी .
कहीं कुछ ख्वाहिसें जो रह गयी थी बचपन की अधूरी ,
उन्हें कर दे एक बार अब भी पूरी ,
थोडा बच के ..
थोडा खुल के ..
तू जी ले ज़िन्दगी ..
गर मनं में है इक चाहत अनसुनी सी ,
सजा ले इक सपना
न बन जाये वो इक कहानी अनकही सी ,
है दिल में जो पाने की कशिश ,
न मिला वो तो रह जाएगी इक खलिश ,
बहुत कर ली सब की , अब सुन अपनी भी ,
अधूरी जो थी ज़िन्दगी पूरी होगी तभी ,
थोडा बच के ..
थोडा खुल के ..
तू जी ले ज़िन्दगी ..
मुस्कुरा ले अभी से तू ज़रा ,
न रख पछतावा - ज़ख्म कोई हो पाए न हरा ,
आने वाले कल की खबर नहीं ,
इक पल का तुझे सबर नहीं ,
तो खुल के निकल और कर ले शरारतें दिल की ,
हो बेपरवाह तू जी ले अपनी इक ही ज़िन्दगी ,
थोडा बच के ..
थोडा खुल के ..
तू जी ले ज़िन्दगी ..!!
कुछ शरारतें दबी सी रह जाती हैं ,
उभरने दो जिन्हें तो बेपरवाही दे जाती हैं ,
कुछ लम्हे जो वक़्त के झरनों में बह जाते हैं ,
ख़ामोशी में भी जो बहुत कुछ कह जाते हैं ,
कुछ ख्वाब संजोय थे नादानी में ,
कहीं छिप न जाये वो इस जवानी में ,
कुछ यादें , कुछ बातें और इक दास्ताँ थी ,
कहीं रह न जाये वो अनकही सी ,
कहीं रह न जाये वो अनकही सी .
कहीं कुछ ख्वाहिसें जो रह गयी थी बचपन की अधूरी ,
उन्हें कर दे एक बार अब भी पूरी ,
थोडा बच के ..
थोडा खुल के ..
तू जी ले ज़िन्दगी ..
गर मनं में है इक चाहत अनसुनी सी ,
सजा ले इक सपना
न बन जाये वो इक कहानी अनकही सी ,
है दिल में जो पाने की कशिश ,
न मिला वो तो रह जाएगी इक खलिश ,
बहुत कर ली सब की , अब सुन अपनी भी ,
अधूरी जो थी ज़िन्दगी पूरी होगी तभी ,
थोडा बच के ..
थोडा खुल के ..
तू जी ले ज़िन्दगी ..
मुस्कुरा ले अभी से तू ज़रा ,
न रख पछतावा - ज़ख्म कोई हो पाए न हरा ,
आने वाले कल की खबर नहीं ,
इक पल का तुझे सबर नहीं ,
तो खुल के निकल और कर ले शरारतें दिल की ,
हो बेपरवाह तू जी ले अपनी इक ही ज़िन्दगी ,
थोडा बच के ..
थोडा खुल के ..
तू जी ले ज़िन्दगी ..!!